न जाने क्यों ऐसा होता है?
न जाने क्यों ऐसा होता है,
मन में एक बोझ सा होता है।
खुशियों के मेले में भी
अकेलापन साथ क्यों होता है?
न जाने क्यों ऐसा होता है,
जब मुस्कान चेहरे पर लाते हैं,
आँखों में नमी छुपाते हैं।
हर किसी के साथ होते हुए भी,
अपना अकेलापन क्यों लगता है?
न जाने क्यों ऐसा होता है,
जब सपने आँसू बन गिरते हैं,
दिल की गहराइयों में,
कोई अनकहा दर्द घिरते हैं।
हर रिश्ते में जैसे कुछ खोता है,
वही खामोशी क्यों हर बार लौटता है?
क्यों वक़्त की चाल तेज़ चलती है,
और हम पीछे छूटते हैं,
हर कदम पर क्यों दिल डगमगाता है,
आसमान की ओर देखते हुए,
कोई सवाल मन में रह जाता है।
न जाने क्यों ऐसा होता है,
जब अपनों के साथ होते हुए भी,
एक खालीपन महसूस होता है।
उनकी मुस्कान में भी,
आँसू बन गिरते हैं|
न जाने क्यों ऐसा होता है,
जब दिल में उम्मीदों की जगह,
निराशा बसने लगती है।
हर दिन की रौशनी में भी,
अंधेरा महसूस होता है।
आगे बढ़ने की चाह में,
हम पीछे कुछ छूटता महसूस करते हैं।
जब हम सबके साथ होते हैं,,
फिर भी खुद को अकेला पाते हैं।
हर हंसी के पीछे एक गहरा सन्नाटा,
हर भीड़ के बीच एक खामोशी होती है।
और न जाने क्यों,
हर बार एक ही सवाल उठता है, ऐसा क्यों होता है?
0 Comments